چه خلاف سر زد از ما
از کتاب: راگ هزره
، فصل احمد ظاهر
، بخش
،
احمد ظاهر
چه خلاف سر زد از ما که در سرای بستی
بر دشمنان نشستی دل دوستان شکستی
سر شانه را شکستم به بهانه ی تطاول
که به حلقه حلقه زلفت نکند دراز دستی
به کمال عذر گفتم که به لب رسيد جانم
ز غرور ناز گفتی که مگر هنوز هستی؟
ز طواف کعبه بگذر، تو که حق نمی شناسی
به در کنشت منشين تو که بت نمی پرستی
تو که ترک سر نگفتی ز پيش چگونه رفتی؟
تو که نقد جان ندادی ز غمش چگونه رستی؟
۲/۴
Intro : | F | F | Gm | Gm | C | C7 | F | C | F
| Che Khelaf... | F | F | F | Gm | C | C | Dm | Dm7 | F | F
| Che Khelaf... | F | F | F | Gm | C | C | Dm | Dm7 | F 5
Bridge 1: | F | Am7 | Dm7 | F | F | Gm | Gm7 | C
| Am7 | Dm7 | F | F | Gm | Gm7 | C | Am7 | F
| Sarc Shane... ||: F | F | C | C7 | Bb | Bb | C | C | F | F :|
| Che Khelaf... | F | F | F | Gm | C | C | Dm | Dm7 | F | F
| Che Khelaf... | F | F | F | Gm | C | C | Dm | Dm7 | F | J)
Ending: | F | Am7 | Dm7 | F | F | Gm | Gm7 | C | Am7
Dm7 | F | F | Gm | Gm7 | C | Am7 | F
بر دشمنان نشستی دل دوستان شکستی
سر شانه را شکستم به بهانه ی تطاول
که به حلقه حلقه زلفت نکند دراز دستی
به کمال عذر گفتم که به لب رسيد جانم
ز غرور ناز گفتی که مگر هنوز هستی؟
ز طواف کعبه بگذر، تو که حق نمی شناسی
به در کنشت منشين تو که بت نمی پرستی
تو که ترک سر نگفتی ز پيش چگونه رفتی؟
تو که نقد جان ندادی ز غمش چگونه رستی؟
۲/۴
Intro : | F | F | Gm | Gm | C | C7 | F | C | F
| Che Khelaf... | F | F | F | Gm | C | C | Dm | Dm7 | F | F
| Che Khelaf... | F | F | F | Gm | C | C | Dm | Dm7 | F 5
Bridge 1: | F | Am7 | Dm7 | F | F | Gm | Gm7 | C
| Am7 | Dm7 | F | F | Gm | Gm7 | C | Am7 | F
| Sarc Shane... ||: F | F | C | C7 | Bb | Bb | C | C | F | F :|
| Che Khelaf... | F | F | F | Gm | C | C | Dm | Dm7 | F | F
| Che Khelaf... | F | F | F | Gm | C | C | Dm | Dm7 | F | J)
Ending: | F | Am7 | Dm7 | F | F | Gm | Gm7 | C | Am7
Dm7 | F | F | Gm | Gm7 | C | Am7 | F